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गुरु गोरक्षनाथ इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (आयुर्वेद कॉलेज) में दीक्षा पाठ्यचर्या समारोह का सातवां दिन
गोरखपुर, 5 अप्रैल। इसमें किसी को भी भ्रांति नहीं होनी चाहिए कि आयुर्वेद न केवल प्राचीनतम बल्कि आरोग्यता प्रदान करने वाली हानिरहित व श्रेष्ठतम भारतीय चिकित्सा पद्धति है। आयुर्वेद एक विशद क्षेत्र है जिसमें हम औषधियां प्रदान करने वाले पादपों व वृक्षों की सेहत का भी पूरा ध्यान रखते हैं। श्रेष्ठ गुणों वाली औषधियों को प्राप्त करने के लिए पादप के विकास हेतु भूमि चयन से लेकर बीजोत्पत्ति व पोषण पर वैज्ञानिक विधि से विश्लेषण करना होता है।
यह बातें केएलई कॉलेज ऑफ आयुर्वेद, बेलगावी, कर्नाटक में द्रव्यगुण विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. अद्वेष बी. होलेयाधे ने कही। वह मंगलवार को महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय, आरोग्यधाम की संस्था गुरु गोरक्षनाथ इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (आयुर्वेद कॉलेज) में बीएएमएस प्रथम वर्ष के दीक्षा पाठ्यचर्या (ट्रांजिशनल करिकुलम) समारोह के सातवें दिन “वृक्षार्युवेद एवं मृगायुर्वेद” विषय पर ऑनलाइन व्याख्यान दे रहे थे। डॉ. अद्वेष ने कहा कि सही मायने में वृक्षार्युवेद वृक्षों को रोगग्रस्त होने से बचाने का उपाय है। वृक्षार्युवेद के अध्ययन से पादपों को रोगमुक्त करने के साथ ही उनसे प्राप्त फसल के आकार व उनके गुणों में भी अभिवृद्धि संभव है। इस संबंध में तमाम पादपों पर सफल शोध किया जा चुका है। वृक्षायुर्वेद इस पक्ष को मानता है कि मानव शरीर की भांति पेड़-पौधों में भी वात, पित्त और कफ के लक्षण होते हैं और इनमें गड़बड़ होने पर वनस्पतियां बीमार हो जाती हैं। उन्होंने नवप्रवेशी विद्यार्थियों को वृक्षार्युवेद के पाठ्यक्रम से भी रूबरू कराया। इसी क्रम में “वदतु संस्कृतम” के सत्र में डॉ. शिवानंद यादव ने आयुर्वेद के विद्यार्थियों के लिए संस्कृत की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए इसके व्याकरण पक्ष की विस्तार से जानकारी दी। गुरु गोरक्षनाथ इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज में रचना विभाग के अध्यक्ष प्रो. (डॉ.) गणेश पाटिल ने अपने व्याख्यान में ‘मेडिकल एथिक्स’ के बारे में बताया। एक अन्य सत्र में राहुल श्रीवास्तव ने कंप्यूटर स्किल्स की जानकारी दी।